
महंगाई के आगे चवन्नी का बस नहीं चल सका और वह इतिहास का हिस्सा बनने जा रही है। बुधवार शाम बैंकों में चवन्नियां जमा कर उनके स्थान पर बड़ी मुद्रा के सिक्के या नोट हासिल करने की अंतिम तिथि थी। भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने चवन्नी को चलन से बाहर करने की घोषणा करते समय सूचना दी थी कि 30 जून के बाद 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्के वैध नहीं रहेंगे।
रिजर्व बैंक के अनुसार 31 मार्च 2010 तक बाजार में पचास पैसे से कम मूल्य वाले कुल 54 अरब 73 करोड़ 80 लाख सिक्के प्रचलन में थे, जिनकी कुल कीमत।,455 करोड़ रुपये मूल्य के बराबर है। यह बाजार में प्रचलित कुल सिक्कों का 54 फीसद है। केंद्र सरकार ने सिक्का अधिनियम, 1906 की धारा 15ए का इस्तेमाल करते हुए 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्कों को बाजार से वापस लेने का निर्णय किया था। चवन्नी और इससे कम मूल्य के सिक्कों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध के बाद सबसे कम मूल्य का सिक्का 50 पैसे का होगा। चवन्नी के बाद अठन्नी भी खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। सरकार ने काफी पहले ही 25 पैसे से कम मूल्य के सिक्कों को बाजार से वापस ले लिया था, क्योंकि उनकी ढलाई में उन पर अंकित मूल्य से कहीं अधिक का खर्चा आता था। सिक्के बनाने में मुख्य रूप से तांबा, निकल, जस्ता और स्टैनलेस स्टील का इस्तेमाल किया जाता है। वैश्विक बाजार में इन प्रमुख धातुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अधिकतर देश कम मूल्य वाले सिक्के बनाने से कतराने लगे हैं।
एक अर्से से बाजार में चवन्नी की कोई महत्ता नहीं रह गई थी। चवन्नी में मिलने वाली चीजें जैसे माचिस, टाफी, पोस्टकार्ड के मूल्य न जाने कब पचास पैसे या उससे अधिक हो गए। आने-दो आने की तरह चवन्नी का भी एक समृद्ध इतिहास रहा है। एक समय कांग्रेस का सदस्यता शुल्क चवन्नी हुआ करता था। चवन्नी में बहुत कुछ मिल जाया करता था। चवन्नी के विदा होते ही सवा रुपये के प्रसाद की धारणा भी खत्म हो जाएगी। चवन्नी खत्म होने के बाद चवन्नी छाप जुमला भी खतरे में पड़ सकता है, लेकिन .राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के. जैसे गीतों के जरिये चवन्नी अपनी याद दिलाती रहेगी।
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